बुधवार 2 जुलाई 2025 - 14:47
जिसने बातिल का साथ दिया, बातिल ने उसे हलाक किया। मौलाना सैयद अली हाशिम आबिदी

हौज़ा / मौलाना सैय्यद अली हाशिम आबिदी ने अशरा मजालिस की छठी मजलिस में रसूलुल्लाह स.अ.व. की प्रसिद्ध हदीस बेशक इमाम हुसैन (अ.स.) हिदायत का चिराग और निजात की कश्ती हैं को अपने खुत्बे का मुख्य विषय बनाते हुए कहा, जिसने मासूम इमाम की इताअत की वह कामयाब हुआ, निजात पाया और जिसने रुगरदानी की हलाक हुआ गुमराह हुआ।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, लखनऊ/ पिछले सालों की तरह इस साल भी बारगाह-ए-उम्मुल बनिन (स.अ.) मंसूर नगर में सुबह साढ़े सात बजे अशरा मजालिस का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें मौलाना सैय्यद अली हाशिम आबिदी खिताब फरमा रहे हैं। 

मौलाना आबिदी ने कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) ने सभी को दावत दी, किसी के लिए कोई बहाना नहीं छोड़ा,अस्र-ए-आशूर तक इमाम हुसैन (अ.स.) ने हर किसी को राह-ए-हक की दावत दी, किसी के लिए कोई उज्र नहीं छोड़ा कि कोई कह सके कि हमें तो दावत नहीं मिली।

उन्होंने उबैदुल्लाह बिन हुर्र जुफी का उदाहरण देते हुए कहा,इमाम हुसैन (अ.स.) ने उबैदुल्लाह बिन हुर्र को दावत दी कि वह इमाम की हमराही करे लेकिन उसने बहाने बनाए और दावत कुबूल नहीं की। नतीजे में पूरी ज़िंदगी शर्मिंदा रहा, वादी-ए-ज़ुल्मत में भटकता रहा और हलाक हुआ।

मौलाना आबिदी ने आगे बताया,उबैदुल्लाह बिन हुर्र ने इमाम हुसैन (अ.स.) की हिमायत नहीं की लेकिन बाद में मुसअब की हिमायत की, जिसने उसे कैद किया और उसी ने उसे कत्ल करवाया। जो भी दुनिया की लालच में हक की हिमायत नहीं करता और बातिल की हिमायत करता है तो वही बातिल उसका क़ल-ओ-क़ल्लम कर देता है और अब्दी शर्मिंदगी और ख़सारा उसका मुक़द्दर होता है।

इस प्रकार उन्होंने इमाम हुसैन अ.स. के मकतब से सीख दी कि सच्ची कामयाबी और नजात केवल हक के रास्ते पर चलने और मासूम इमाम की इताअत में है, जबकि बातिल का साथ देने वाला अंततः स्वयं बातिल के हाथों नष्ट हो जाता है।

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